Kabir Das Poems In Hindi — संत कबीर दास की कविताएँ दोहे

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Kabir Das Poems In Hindi: आज के आर्टिकल में हम आपके साथ कबीर दास की कविता दोहे शेयर कर रहे हैं। हिन्दी के विख्यात रचनाकार संत कबीर दास को हर कोई जानता हैं। क्योंकि स्कूल में पढ़ाएं जाने वाले कई दोहे कविता उनके ही लिखे हुए होते है। इसलिए आज के लेख में हम आपके साथ संत कबीर दास की हिंदी कविताएँ दोहे (Kabir short poems in hindi) शेयर कर रहे है।

Kabir Das Poems In Hindi



कथनी-करणी का अंग -कबीर (kabir das poems in hindi)

जैसी मुख तैं नीकसै, तैसी चालै चाल।
पारब्रह्म नेड़ा रहै, पल में करै निहाल॥

पद गाए मन हरषियां, साँखी कह्यां अनंद।
सो तत नांव न जाणियां, गल में पड़िया फंद॥

मैं जाण्यूं पढिबौ भलो, पढ़बा थैं भलौ जोग।
राम-नाम सूं प्रीति करि, भल भल नींदौ लोग॥

कबीर पढ़िबो दूरि करि, पुस्तक देइ बहाई।
बावन आखर सोधि करि, ररै ममै चित्त लाई॥

पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय।
ढ़ाई आखर प्रेम का, पढ़ै सो पंडित होइ॥

करता दीसै कीरतन, ऊँचा करि-करि तुंड।
जानें-बूझै कुछ नहीं, यौं हीं आंधा रूंड॥



अंखियां तो झाईं परी -कबीर (kabir das poems)

अंखियां तो झाईं परी,
पंथ निहारि निहारि।

जीहड़ियां छाला परया,
नाम पुकारि पुकारि।

बिरह कमन्डल कर लिये,
बैरागी दो नैन।

मांगे दरस मधुकरी,
छकै रहै दिन रैन।

सब रंग तांति रबाब तन,
बिरह बजावै नित।

और न कोइ सुनि सकै,
कै सांई के चित।




नैया पड़ी मंझधार गुरु बिन कैसे लागे पार -कबीर (kabir poems in hindi)

नैया पड़ी मंझधार गुरु बिन कैसे लागे पार ॥

साहिब तुम मत भूलियो लाख लो भूलग जाये ।
हम से तुमरे और हैं तुम सा हमरा नाहिं ।
अंतरयामी एक तुम आतम के आधार ।
जो तुम छोड़ो हाथ प्रभुजी कौन उतारे पार ॥
गुरु बिन कैसे लागे पार ॥

मैं अपराधी जन्म को मन में भरा विकार ।
तुम दाता दुख भंजन मेरी करो सम्हार ।
अवगुन दास कबीर के बहुत गरीब निवाज़ ।
जो मैं पूत कपूत हूं कहौं पिता की लाज ॥
गुरु बिन कैसे लागे पार ॥




मोको कहां ढूढें तू बंदे (kabir short poems in hindi)



मोको कहां ढूढें तू बंदे मैं तो तेरे पास मे ।
ना मैं बकरी ना मैं भेडी ना मैं छुरी गंडास मे।
नही खाल में नही पूंछ में ना हड्डी ना मांस मे ॥

ना मै देवल ना मै मसजिद ना काबे कैलाश मे ।
ना तो कोनी क्रिया-कर्म मे नही जोग-बैराग मे ॥

खोजी होय तुरंतै मिलिहौं पल भर की तलास मे
मै तो रहौं सहर के बाहर मेरी पुरी मवास मे
कहै कबीर सुनो भाई साधो सब सांसो की सांस मे ॥




मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में (kabir das poetry)

जो सुख पाऊँ राम भजन में
सो सुख नाहिं अमीरी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ॥

भला बुरा सब का सुनलीजै
कर गुजरान गरीबी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ॥

आखिर यह तन छार मिलेगा
कहाँ फिरत मग़रूरी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ॥

प्रेम नगर में रहनी हमारी
साहिब मिले सबूरी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ॥

कहत कबीर सुनो भयी साधो
साहिब मिले सबूरी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ॥


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Image Credit:- Canva


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