Skandmata Katha | स्कन्द माता की कथा – नवरात्रि का पाँचवा दिन 

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Skandmata Katha: शारदीय नवरात्रि का पावन पर्व शुरू हो चुका है। देशभर में नवरात्रि का पावन त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाया जा रहा है। कल यानी 19 सितंबर को नवरात्रि का पांचवां दिन है। इस दिन देवी मां के पांचवें स्वरूप स्कंदमाता की पूजा की जाती है।

Skandmata Katha


स्कंदमाता, जिन्हें देवी कात्यायनी के रूप में भी जाना जाता है, हिन्दू धर्म में देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों में से एक हैं जिन्हें नवरात्रि के नौ दिनों में पूजा जाता है। स्कंदमाता का नाम ‘स्कंद’ के माता के रूप में है, जिन्होंने देवी कात्यायनी के विराट रूप में प्रकट होकर अपने भक्तों की रक्षा की थी।

स्कंदमाता के श्लोक (Skandmata ka Shlok)

सिंहसनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कंदमाता यशस्विनी॥

इस श्लोक का अर्थ है कि देवी स्कंदमाता सिंहासन पर विराजमान हैं और उनके चार हाथ हैं। उनके दो हाथों में कमल के फूल हैं और एक हाथ में वे अपने पुत्र कार्तिकेय को गोद में लिए हुए हैं। देवी स्कंदमाता हमेशा शुभ फल प्रदान करती हैं और उनकी जय हो।

Skandmata ka Mantra

ॐ देवी स्कंदमातायै नमः

ॐ स्कंदमाते च विद्महे कार्तिकेयाय धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात्:


Skandmata Katha | स्कन्द माता की कथा

Skandmata Katha


नवदुर्गा का पांचवां स्वरूप स्कंदमाता है। नवरात्रि के पांचवें दिन स्कंदमाता की पूजा की जाती है। स्कंदमाता को स्कंदमाता इसलिए कहा जाता है क्योंकि वह कार्तिकेय की माता हैं। कार्तिकेय को स्कंद, कुमार, गणेश, गजानन, सुब्रह्मण्य आदि नामों से भी जाना जाता है। स्कंदमाता देवी दुर्गा का ही एक रूप हैं।

पौराणिक कथा के अनुसार, देवताओं और असुरों के बीच भयंकर युद्ध चल रहा था। असुरों के राजा तारकासुर ने देवताओं पर अत्याचार करना शुरू कर दिया था। देवताओं ने भगवान शिव से मदद मांगी। 

तारकासुर का वध करने के लिए भगवान शिव और माता पार्वती ने अपने पुत्र कार्तिकेय को भेजा। माता पार्वती ने कार्तिकेय को युद्ध के लिए प्रशिक्षित करने के लिए स्कंदमाता का रूप धारण किया था। स्कंदमाता के रूप में माता पार्वती ने कार्तिकेय को युद्ध की कला सिखाई और उन्हें शक्तिशाली बनाया।

कार्तिकेय ने तारकासुर को पराजित कर दिया। स्कंदमाता की कृपा से देवताओं को तारकासुर से मुक्ति मिली।

स्कंदमाता का स्वरूप अत्यंत सुंदर है। उनकी चार भुजाएं हैं। उनकी दो भुजाओं में कमल के फूल हैं और अन्य दो भुजाओं में वे अपने पुत्र कार्तिकेय को गोद में लिए हुए हैं। स्कंदमाता का वाहन सिंह है।

स्कंदमाता का स्वरूप अत्यंत सौम्य और दयालु है। वे अपने भक्तों को सभी प्रकार की सुख-समृद्धि प्रदान करती हैं। स्कंदमाता की पूजा से संतान प्राप्ति, बुद्धि, बल, ज्ञान और शक्ति की प्राप्ति होती है।

स्कंदमाता को ज्ञान, बुद्धि और शक्ति की देवी माना जाता है। इनकी पूजा से भक्तों को इन गुणों की प्राप्ति होती है।


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स्कंदमाता की कथा एक आदर्श माता की कहानी है। स्कंदमाता की पूजा नवरात्रि के पांचवें दिन की जाती है। इस दिन भक्तों को देवी स्कंदमाता की पूजा अवश्य करनी चाहिए। स्कंदमाता की कथा हमें यह सिखाती है कि माताएं अपने बच्चों के लिए कुछ भी कर सकती हैं। वे अपने बच्चों का हर कदम पर मार्गदर्शन करती हैं और उनकी रक्षा करती हैं।

आशा है आपको यह स्कन्द माता की कथा (Skandmata Katha) पसंद आई होगी। ऐसी ही और धार्मिक कहानियाँ, भूतिया कहानियाँ, पंचतंत्र की कहानियाँ और प्रेम कहानियाँ पढ़ने के लिए Shayaribell.com को फॉलो करना न भूले।

Image Credit:- Odisha Bhaskar English


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