Samudra Manthan Story in Hindi | समुद्र मंथन हिंदू पौराणिक कथा

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Samudra Manthan Story: समुद्र मंथन की कहानी हिंदू पौराणिक ग्रंथों में विस्तार से वर्णित है, और इसका मुख्य उद्देश्य अमृत (अनन्त जीवन का अमृत) प्राप्त करना था। इस कथा के अनुसार देवताओं और दानवों के बीच समुद्र मंथन हुआ था। यह कथा महाभारत, विष्णु पुराण, भगवत पुराण तथा अन्य पौराणिक ग्रंथों में विस्तार से मिलती है।

समुद्र मंथन की कथा – Samudra Manthan Story in Hindi

Samudra Manthan Story

एक समय की बात है, ऋषि दुर्वासा अपने शिष्यों के साथ भगवान शिव के दर्शन के लिए कैलाश जा रहे थे। रास्ते में उनकी मुलाकात देवराज इंद्र से हुई। इंद्र ने ऋषि दुर्वासा और उनके शिष्यों की भक्तिपूर्वक प्रणाम किया। तब दुर्वासा ने इंद्र को आशीर्वाद दिया और उन्हें भगवान विष्णु का पारिजात पुष्प भेंट किया। अहंकार के नशे में चूर इंद्र ने उस फूल को अपने हाथी ऐरावत के सिर पर रख दिया। उस पुष्प का स्पर्श होते ही ऐरावत सहसा विष्णु भगवान के समान तेजस्वी हो गया। उसने इन्द्र का त्याग कर दिया और उस दिव्य पुष्प को कुचलते हुए वन की ओर चला गया। 

इंद्र द्वारा भगवान विष्णु के पुष्प का अपमान देखकर दुर्वासा ऋषि अत्यंत क्रोधित हो गए। अपने क्रोध में उन्होंने इंद्र को धन और समृद्धि की देवी लक्ष्मी से हीन हो जाने का श्राप दे दिया। इस श्राप के परिणामस्वरूप, लक्ष्मी ने तुरंत स्वर्ग छोड़ दिया, लक्ष्मी के चले जाने से इन्द्र आदि देवता निर्बल और श्रीहीन हो गए। उनका वैभव लुप्त हो गया।  इंद्र को शक्तिहीन जानकर राक्षसों ने स्वर्ग पर आक्रमण कर दिया और देवताओं को पराजित कर स्वर्ग के साम्राज्य पर अपना झंडा फहरा दिया।

 तब इन्द्र देवगुरु बृहस्पति और अन्य देवताओं के साथ ब्रह्माजी की सभा में उपस्थित हुए। 

तब ब्रह्माजी बोले — देवेन्द्र,  भगवान विष्णु रूपी पुष्प का अपमान करने के कारण देवी लक्ष्मी रुष्ट होकर तुमसे दूर चली गयी हैं। उन्हें पुनः प्रसन्न करने के लिए भगवान नारायण का आशीर्वाद लें। उनके आशीर्वाद से तुम्हें अपना खोया हुआ गौरव पुनः प्राप्त होगा।

इस प्रकार ब्रह्माजी ने इन्द्र को आस्वस्त किया और उन्हें लेकर भगवान विष्णु की शरण में पहुँचे। वहाँ परब्रह्म भगवान विष्णु भगवती लक्ष्मी के साथ विराजमान थे। देवगण भगवान विष्णु की स्तुति करते हुए बोले— भगवान् , आपके श्रीचरणों में हमारा बारम्बार प्रणाम। भगवान् हम सब जिस उद्देश्य से आपकी शरण में आए हैं, कृपा करके आप उसे पूरा कीजिए। दुर्वाषा ऋषि के शाप के कारण माता लक्ष्मी हमसे रूठ गई हैं और दैत्यों ने हमें पराजित कर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया है। अब हम आपकी शरण में हैं, हमारी रक्षा कीजिए। 

 भगवान विष्णु त्रिकालदर्शी हैं। वे पल भर में ही देवताओं के मन की बात जान गए। तब वे देवगण से बोले— देवगण ! मेरी बात ध्यानपूर्वक सुनें, क्योंकि केवल यही तुम्हारे कल्याण का उपाय है। दैत्यों पर इस समय काल की विशेष कृपा है इसलिए जब तक तुम्हारे उत्कर्ष और दैत्यों के पतन का समय नहीं आता, तब तक तुम उनसे संधि कर लो। 

 क्षीरसागर के गर्भ में अनेक दिव्य पदार्थों के साथ-साथ अमृत भी छिपा है। उसे पीने वाले के सामने मृत्यु भी पराजित हो जाती है। इसके लिए तुम्हें समुद्र मंथन करना होगा। यह कार्य अत्यंत दुष्कर है, अतः इस कार्य में दैत्यों से सहायता लो। कूटनीति भी यही कहती है कि आवश्यकता पड़ने पर शत्रुओं को भी मित्र बना लेना चाहिए। तत्पश्चात अमृत पीकर अमर हो जाओ। तब दुष्ट दैत्य भी तुम्हारा अहित नहीं कर सकेंगे। 

 देवगण वे जो शर्त रखें, उसे स्वाकीर कर लें। यह बात याद रखें कि शांति से सभी कार्य बन जाते हैं, क्रोध करने से कुछ नहीं होता। भगवान विष्णु के परामर्श के अनुसार इन्द्रादि देवगण दैत्यराज बलि के पास संधि का प्रस्ताव लेकर गए और उन्हें अमृत के बारे में बताकर समुद्र मंथन के लिए तैयार कर लिया। 

 समुद्र मंथन के लिए समुद्र में मंदराचल को स्थापित कर वासुकि नाग को रस्सी बनाया गया। तत्पश्चात दोनों पक्ष अमृत-प्राप्ति के लिए समुद्र मंथन करने लगे। अमृत पाने की इच्छा से सभी बड़े जोश और वेग से मंथन कर रहे थे। सहसा तभी समुद्र में से कालकूट नामक भयंकर विष निकला। उस विष की अग्नि से दसों दिशाएँ जलने लगीं। समस्त प्राणियों में हाहाकार मच गया। 

 उस विष की ज्वाला से सभी देवता तथा दैत्य जलने लगे और उनकी कान्ति फीकी पड़ने लगी। इस पर सभी ने मिलकर भगवान शंकर की प्रार्थना की। उनकी प्रार्थना पर महादेव जी उस विष को हथेली पर रख कर उसे पी गये किन्तु उसे कण्ठ से नीचे नहीं उतरने दिया। 

 उस कालकूट विष के प्रभाव से शिव जी का कण्ठ नीला पड़ गया। इसीलिये महादेव जी को नीलकण्ठ कहते हैं। उनकी हथेली से थोड़ा सा विष पृथ्वी पर टपक गया था जिसे साँप, बिच्छू आदि विषैले जन्तुओं ने ग्रहण कर लिया। 

 विष को शंकर भगवान के द्वारा पान कर लेने के पश्चात् फिर से समुद्र मंथन प्रारम्भ हुआ। दूसरा रत्न कामधेनु गाय निकली जिसे ऋषियों ने रख लिया। 

 फिर उच्चैश्रवा घोड़ा निकला जिसे दैत्यराज बलि ने रख लिया। उसके बाद ऐरावत हाथी निकला जिसे देवराज इन्द्र ने ग्रहण किया। 

 ऐरावत के पश्चात् कौस्तुभमणि समुद्र से निकली उसे विष्णु भगवान ने रख लिया। फिर कल्पद्रुम निकला और रम्भा नामक अप्सरा निकली। इन दोनों को देवलोक में रख लिया गया।

आगे फिर समु्द्र को मथने से लक्ष्मी जी निकलीं। लक्ष्मी जी ने स्वयं ही भगवान विष्णु को वर लिया। उसके बाद कन्या के रूप में वारुणी प्रकट हई जिसे दैत्यों ने ग्रहण किया। फिर एक के पश्चात एक चन्द्रमा, पारिजात वृक्ष तथा शंख निकले और अन्त में धन्वन्तरि वैद्य अमृत का घट लेकर प्रकट हुए।”

दैत्यों ने उनके हाथ से अमृत छीन लिया, धन्वंतरि से अमृत छीनने के बाद राक्षस अपने स्वभाव में तमोगुण होने के कारण पहले अमृत पीने के लिए आपस में लड़ने लगे लेकिन कोई भी अमृत नहीं पी सका। यह देखकर देवताओं ने भगवान विष्णु से मदद की गुहार लगाई। तब भगवान विष्णु ने कहा कि राक्षसों का अमृत पीकर अमरत्व प्राप्त करना सृष्टि के लिए लाभदायक नहीं है।

यह कहकर भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण किया जो सभी स्त्री गुणों से परिपूर्ण थी। भगवान विष्णु के इस अवतार को मोहिनी अवतार भी कहा जाता है।

भगवान मोहिनी रूप धारण करके राक्षसों के बीच गये। ऐसा सौंदर्य राक्षसों ने पहले कभी नहीं देखा था, अत: वे सभी भगवान की माया से मंत्रमुग्ध हो गये।

तब मोहिनी ने कहा, ‘तुम सब व्यर्थ ही लड़ रहे हो, मैं यह अमृत देवताओं और दानवों में बराबर-बराबर बांटती हूँ। 

इस प्रकार उसने दो लाइन बना दीं, एक राक्षसों के लिए और दूसरी देवताओं के लिए और छल से केवल देवताओं को ही अमृत पिलाने लगी।

मोहिनी के आकर्षण से मोहित राक्षस इस बात को समझ नहीं पाए लेकिन राहु नाम का राक्षस इस चाल को समझ गया और भेष बदलकर देवताओं की लाइन में बैठ गया और अमृत पी लिया।

अमृत अभी उनके गले तक पहुंचा ही था कि देवताओं के कल्याण से प्रेरित होकर चंद्रमा और सूर्य ने इसका रहस्य बता दिया।

जैसे ही भगवान विष्णु को इस बात का पता चला तो उन्होंने सुदर्शन चक्र से राहु का सिर धड़ से अलग कर दिया, लेकिन अमृत पीने के कारण राहु के शरीर के दोनों हिस्से जीवित रहे।

सिर वाला भाग राहु और धड़ वाला भाग केतु कहलाया। ये दोनों छाया ग्रह हैं। ज्योतिष में इनका बहुत महत्व है और ये दोनों छाया ग्रह अन्य नौ ग्रहों पर विशेष प्रभाव डालते हैं।

तभी से राहु के उस मुख ने चंद्रमा और सूर्य से अटूट शत्रुता स्थापित कर ली, जिसका कष्ट उन्हें आज भी होता है।

अमृत पीने के बाद देवताओं की शक्ति फिर से बढ़ गई और उन्होंने राक्षसों पर हमला किया, उन्हें हराया और स्वर्ग का राज्य प्राप्त किया।


समुद्र मंथन के 14 रत्न कौन कौन से हैं? 

समुद्र मंथन से निकली वस्तुओं का विवरण:-

1. अमृत: अमृत अमरता का प्रतीक है।

2. वारुणी: वारुणी एक पेय है जो अमरता प्रदान करता है।

3. लक्ष्मी: लक्ष्मी धन, वैभव, और सौभाग्य की देवी हैं।

4. धन्वंतरी: धन्वंतरी वैद्यक के देवता हैं। उन्होंने अमृत कलश से अमर औषधियाँ निकालीं।

5. हलाहल विष: हलाहल विष एक भयंकर विष है। भगवान शिव ने इस विष को अपने गले में धारण किया, जिससे उनका कंठ नीला पड़ गया।

6. कालिया नाग: कालिया नाग एक विषैला नाग है। भगवान कृष्ण ने कालिया नाग को पराजित किया।

7. ऐरावत: ऐरावत भगवान इंद्र का वाहन है।

8. कल्पवृक्ष: कल्पवृक्ष एक ऐसा वृक्ष है जो सभी इच्छाओं को पूरा करता है।

9. शंख: शंख एक पवित्र वाद्य है।

10. कौस्तुभ मणि: कौस्तुभ मणि एक कीमती मणि है।

11. पारिजात वृक्ष: पारिजात वृक्ष एक ऐसा वृक्ष है जिसकी सुगंध मन मोह लेती है।

12. कामधेनु: कामधेनु एक ऐसी गाय है जो सभी इच्छाओं को पूरा करती है।

13. नागमणि: नागमणि एक ऐसी मणि है जो नागों के राजा को पहननी चाहिए।

14. अश्विनकुमार: अश्विनीकुमार देवताओं के वैद्य हैं।

देवी लक्ष्मी के जन्म की कहानी, जो समृद्धि और सौभाग्य के विभिन्न रूपों की दाता है, समुद्र मंथन के नाम से जानी जाने वाली पौराणिक कथा के साथ जटिल रूप से जुड़ी हुई है। जो व्यक्ति इस मनोरम कथा को सुनते हैं या पढ़ते हैं, उन्हें स्वयं देवी लक्ष्मी का दिव्य आशीर्वाद प्राप्त होता है।

आपको यह कथा (Samudra Manthan Story) कैसी लगी हमें कमेंट करके जरूर बताएं। ऐसी ही पौराणिक कथा और आध्यात्मिक कथा पढ़ने के लिए Shayaribell.com को फॉलो करें।

संबंधित प्रश्न

Q1. समुद्र मंथन क्यों किया गया था ?

ऋषि दुर्वासा के श्राप के कारण असहाय और शक्तिहीन हो चुके देवताओं ने भगवान विष्णु की सलाह पर अमृत प्राप्त करने के लिए राक्षसों के साथ मिलकर समुद्र मंथन का आयोजन किया था। 

Q2. उस महासागर का क्या नाम था जिसका मंथन देवताओं और राक्षसों ने किया था?

देवताओं और राक्षसों द्वारा जिस समुद्र का मंथन किया गया था उसका नाम क्षीरसागर था।

Q3. समुद्र मंथन से प्राप्त उस हाथी का क्या नाम था?

समुद्र मंथन से प्राप्त उस हाथी का नाम ऐरावत था।

Q4. समुद्र मंथन में कितनी चीजें निकली थी?

समुद्र मंथन से कुल 14 चीजें निकलीं।


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