Diwali Story in Hindi: दीवाली की पौराणिक कथाएं और कहानियाँ

शेयर करें!


दिवाली एक ऐसा त्यौहार है जिसे हमारे देश में कई जगहों पर बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। क्या आप जानते हैं हम दिवाली क्यों मनाते हैं? हम जब छोटे थे तब से सुनते आ रहे हैं कि जब भगवान राम लंका पर विजय प्राप्त कर अपनी नगरी अयोध्या लौटे तो नगरवासियों ने अपने-अपने घरों में दीपक जलाकर उनका स्वागत किया। तब से यह त्यौहार मनाया जाने लगा। दिवाली मनाने के पीछे और भी कई मान्यताएं हैं। आइए जानते हैं इन सबके बारे में। 

प्राचीन समय में अयोध्या के राजा दशरथ के चार पुत्र थे – राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न। राम सभी भाइयों में सबसे बड़े और सबसे बुद्धिमान थे। राजा दशरथ ने राम को अपने उत्तराधिकारी के रूप में घोषित किया और उनकी शादी सीता से करवा दी।

हालांकि, दशरथ की दूसरी पत्नी कैकेयी ने राम को चौदह साल के वनवास पर भेजने की शर्त रखी, ताकि उसका पुत्र भरत को राजा बना सके। राजा दशरथ अपनी पत्नी की इच्छा को पूरा करने के लिए मजबूर हुए और राम को वनवास पर भेज दिया।

राम, सीता और लक्ष्मण ने चौदह साल तक वन में कठिनाइयों का सामना करते हुए जीवन बिताया। इस दौरान भगवान राम ने कई राक्षसों का वध किया, जिनमें से एक था लंका का राजा रावण। रावण एक अत्याचारी और क्रूर राजा था, जिसने सीता का अपहरण कर लिया था।

राम, लक्ष्मण और हनुमान के नेतृत्व में वानर सेना ने लंका पर आक्रमण किया और रावण को युद्ध में पराजित किया। रावण के वध के बाद, भगवान राम अपने परिवार के साथ अयोध्या लौटे। अयोध्यावासियों ने राम के स्वागत में जगह-जगह दीपक जलाए और उनका भव्य स्वागत किया।

इस प्रकार, दीपावली के त्योहार की शुरुआत हुई, जो भगवान राम के अयोध्या लौटने और अच्छाई की जीत का प्रतीक है। इस दिन घरों और सड़कों को रंगोली और दीपक से सजाया जाता है, मिठाइयां बांटी जाती हैं और आतिशबाजी का आनंद लिया जाता है। दिवाली का त्योहार प्रकाश और समृद्धि का प्रतीक है, जो भारत में पूरे जोश और उत्साह के साथ मनाया जाता है।


नरकासुर वध की कहानी दीपावली के त्योहार से जुड़ी एक पौराणिक कथा है। इस कथा के अनुसार, प्राचीन समय में प्रागज्योतिषपुर नगर का राजा नरकासुर एक अत्याचारी और क्रूर राक्षस था। उसने अपनी शक्ति के बल पर देवताओं और संतों को बंदी बना लिया था। नरकासुर के अत्याचारों से परेशान होकर देवता और संत भगवान कृष्ण से मदद मांगने लगे।

भगवान कृष्ण ने नरकासुर का वध करने का संकल्प लिया। उन्होंने नरकासुर को ललकारते हुए कहा, “हे नरकासुर, तुमने देवताओं और संतों को बंदी बना लिया है। तुमने अच्छाई पर बुराई का प्रभुत्व स्थापित कर दिया है। मैं तुम्हें पराजित करूंगा और देवताओं और संतों को तुम्हारे चंगुल से मुक्त करवाऊंगा।”

नरकासुर भगवान कृष्ण की चुनौती को स्वीकार करते हुए युद्ध के लिए तैयार हो गया। दोनों के बीच भयंकर युद्ध हुआ। अंत में, भगवान कृष्ण ने अपनी सुदर्शन चक्र से नरकासुर का वध कर दिया। नरकासुर के वध के बाद, देवताओं और संतों को मुक्ति मिल गई।

नरकासुर के वध की खुशी में देवताओं और संतों ने जगह-जगह दीपक जलाए। इस दिन कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि थी। तभी से इस दिन को नरक चतुर्दशी के रूप में मनाया जाता है। नरक चतुर्दशी को छोटी दिवाली भी कहा जाता है।

नरकासुर वध की कहानी बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। यह कहानी हमें यह भी सिखाती है कि हमें हमेशा अच्छाई के लिए लड़ना चाहिए।


आप महाभारत की महाकाव्य गाथा से अच्छी तरह परिचित हो सकते हैं, एक ऐसी कहानी जो सदियों से चली आ रही है और अपने जटिल कथानक और पात्रों से पीढ़ियों को मंत्रमुग्ध करती आई है।

कौरवों ने शतरंज के ऊंचे दांव वाले खेल में पांडवों को उनकी संपत्ति से धोखा देने के लिए अपने मामा शकुनि की कुटिल रणनीति का चतुराई से इस्तेमाल किया था।

इस विश्वासघाती कृत्य के परिणामस्वरूप न केवल पांडवों की दर्दनाक हानि हुई, बल्कि उन्हें तेरह वर्षों की कठिन अवधि के लिए भीषण निर्वासन में भी जाना पड़ा, जिससे वे अनिश्चितता और कठिनाई की दुनिया में चले गए।

कार्तिक अमावस्या के शुभ अवसर पर, प्रसिद्ध पांच पांडव, अर्थात् युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव, तेरह वर्षों के निर्वासन की कठिन अवधि को सहन करने के बाद खुशी-खुशी अपने राज्य लौट आए।

   खुशी और राहत की भावना से अभिभूत होकर, उनके राज्य के भीतर रहने वाले लोगों ने राजसी दीपकों की एक श्रृंखला जलाकर उनकी विजयी घर वापसी का पूरे दिल से जश्न मनाया। इस खुशी की घटना का गहरा महत्व है क्योंकि यह सबसे महत्वपूर्ण कारणों में से एक है कि दिवाली का त्योहार अत्यंत भव्यता और उत्साह के साथ मनाया जाता है।


दिवाली का त्योहार हिंदी कैलेंडर के अनुसार कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है। कहा जाता है इस दिन मां लक्ष्मी का अवतार हुआ था। 

देवी लक्ष्मी के अवतार की कई कथाएं हैं। सबसे प्रसिद्ध कथा के अनुसार, देवी लक्ष्मी का अवतार समुद्र मंथन के दौरान हुआ था। जब देवता और असुरों ने मिलकर समुद्र को मथना शुरू किया, तो उसमें से कई मूल्यवान वस्तुएं निकलीं। इनमें से एक वस्तु देवी लक्ष्मी थीं।

देवी लक्ष्मी का जन्म एक कमल के फूल पर हुआ था। वह अत्यंत सुंदर और आकर्षक थीं। देवताओं और असुरों दोनों ने ही उन्हें प्राप्त करने की इच्छा की।

अंत में, देवी लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को अपना पति चुना। तब से, देवी लक्ष्मी भगवान विष्णु के साथ रहती हैं और उन्हें धन और समृद्धि प्रदान करती हैं।


Best Poem on Diwali in Hindi 2023 | दि‍वाली पर हिंदी कविताऍं

Dhanteras katha In Hindi: धनतेरस की पौराणिक कथाएँ

Dhanteras Poems in Hindi | धनतेरस पर कविता


अगर आपको हमारी कहानियाँ (Diwali Story in Hindi) पसंद आईं, तो कृपया अपने विचार हमारे साथ टिप्पणी अनुभाग में साझा करें और इस पोस्ट को अपने दोस्तों के साथ साझा करके इसका प्रचार करना न भूलें। Shayaribell.com के साथ जुड़े रहने के लिए फॉलो करना न भूलें।

धन्यवाद।

Image Credit:- Freepik


शेयर करें!

Add a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *